निर्वाण (Hindi Wikipedia)

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abhayagiri.org

  • अजान पसन्नो और अजान अमारो (Ajahn Pasanno and Ajahn Amaro), द आयलैंड: एन एंथोलॉजी ऑफ द बुद्धाज टीचिंग्स ऑन निब्बाण (The Island: An Anthology of the Buddha’s Teachings on Nibbāna), पेज 131.[2] Archived 2010-05-23 at the वेबैक मशीन पर ऑनलाइन उपलब्ध.

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  • पीटर हार्वे, कॉन्शियसनेस मिस्टिसिज्म इन द डिस्कोर्स ऑफ द बुद्ध (Consciousness mysticism in the discourses of the Buddha). कैरेल वर्नर की, द योगी एंड द मिस्टिक; स्टडीज इन इंडियन एंड कंपेयरेटिव मिस्टिसिज्म (The Yogi and the Mystic; Studies in Indian and Comparative Mysticism)."राउटलेज, 1995, पेज 82; books.google.com Archived 2014-06-27 at the वेबैक मशीन
  • पीटर हार्वे, कॉन्शियसनेस मिस्टिसिज्म इन द डिस्कोर्सेज ऑफ द बुद्ध (Consciousness mysticism in the discourses of the Buddha). कैरेल वर्नर में, द योगी एंड द मिस्टिक; स्टडीज इन इंडियन एंड कंपेयरेटिव मिस्टिसिज्म (The Yogi and the Mystic; Studies in Indian and Comparative Mysticism)."राउटलेज, 1995, पृष्ठ 82, [1] Archived 2014-06-27 at the वेबैक मशीन
  • काशीनाथ उपाध्याय, अर्ली बुद्धिज्म एंड द भगवदगीता (Early Buddhism and the Bhagavadgita) मोतीलाल बनारसीदास पब्लिकेशंस, 1998, पृष्ठ 354-356. [5] Archived 2014-06-27 at the वेबैक मशीन

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  • सैली बी किंग, द ड्रॉक्ट्राइन ऑफ बुद्ध-नेचर इज़ इंपेकैबिली बुद्धिस्ट. (Sallie B. King, The Doctrine of Buddha-Nature is impeccably Buddhist)[6] Archived 2007-09-27 at the वेबैक मशीन पृष्ठ 1-6.

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  • Jacobi, Hermann; Ed. F. Max Müller (1884). Kalpa Sutra, Jain Sutras Part I, Sacred Books of the East, Vol. 22. Oxford: The Clarendon Press. मूल से 7 जुलाई 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2 जून 2010.
  • Jacobi, Hermann; Ed. F. Max Müller (1895). Uttaradhyayana Sutra, Jain Sutras Part II, Sacred Books of the East, Vol. 45. Oxford: The Clarendon Press. मूल से 4 जुलाई 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2 जून 2010.

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  • पीटर हार्वे, कॉन्शियसनेस मिस्टिसिज्म इन द डिस्कोर्स ऑफ द बुद्ध (Consciousness mysticism in the discourses of the Buddha). कैरेल वर्नर की, द योगी एंड द मिस्टिक; स्टडीज इन इंडियन एंड कंपेयरेटिव मिस्टिसिज्म (The Yogi and the Mystic; Studies in Indian and Comparative Mysticism)."राउटलेज, 1995, पेज 82; books.google.com Archived 2014-06-27 at the वेबैक मशीन
  • थानीस्सरो भिक्खू की ब्रह्म-निमंतंतिका सुत्त पर टिप्पणी, Access to Insight: Readings in Theravada Buddhism. Archived 2010-02-02 at the वेबैक मशीन
  • उदाहरण के लिए ध्यान सुत्त देखें, Access to Insight: Readings in Theravada Buddhism. Archived 2010-05-07 at the वेबैक मशीन
  • थनीस्सरो भिक्खू, Access to Insight: Readings in Theravada Buddhism. Archived 2010-12-22 at the वेबैक मशीन
  • पीटर हार्वे, कॉन्शियसनेस मिस्टिसिज्म इन द डिस्कोर्सेज ऑफ द बुद्ध (Consciousness mysticism in the discourses of the Buddha). कैरेल वर्नर में, द योगी एंड द मिस्टिक; स्टडीज इन इंडियन एंड कंपेयरेटिव मिस्टिसिज्म (The Yogi and the Mystic; Studies in Indian and Comparative Mysticism)."राउटलेज, 1995, पृष्ठ 82, [1] Archived 2014-06-27 at the वेबैक मशीन
  • अजान पसन्नो और अजान अमारो (Ajahn Pasanno and Ajahn Amaro), द आयलैंड: एन एंथोलॉजी ऑफ द बुद्धाज टीचिंग्स ऑन निब्बाण (The Island: An Anthology of the Buddha’s Teachings on Nibbāna), पेज 131.[2] Archived 2010-05-23 at the वेबैक मशीन पर ऑनलाइन उपलब्ध.
  • थनीस्सरो भिक्खू की ब्रह्म-निमंतंतिका सुत्त पर टिप्पणी, Access to Insight: Readings in Theravada Buddhism. Archived 2010-02-02 at the वेबैक मशीन
  • थनीस्सरो भिक्खू, Access to Insight: Readings in Theravada Buddhism Archived 2010-12-22 at the वेबैक मशीन, Access to Insight: Readings in Theravada Buddhism Archived 2010-02-02 at the वेबैक मशीन.
  • अजान ब्रह्माली,[3] Archived 2009-08-06 at the वेबैक मशीन .
  • रूपर्ट गेथिन हार्वे के कुछ तर्कों पर असहमति जताते हैं; [4] Archived 2010-06-16 at the वेबैक मशीन
  • काशीनाथ उपाध्याय, अर्ली बुद्धिज्म एंड द भगवदगीता (Early Buddhism and the Bhagavadgita) मोतीलाल बनारसीदास पब्लिकेशंस, 1998, पृष्ठ 354-356. [5] Archived 2014-06-27 at the वेबैक मशीन
  • देखें, Access to Insight: Readings in Theravada Buddhism, DN 11 Archived 2010-12-22 at the वेबैक मशीन
  • देखें Access to Insight: Readings in Theravada Buddhism, Buddharakkhita (1996a). Archived 2006-07-08 at the वेबैक मशीन परमता-मंजूषा (विशुद्धिमार्ग व्याख्या), vv. 9-10, में "केवल अंतरदृष्टि से ही" के विकल्प पर ये चेतावनी दी गई है:
    'केवल अंतरदृष्टि से ही' शब्दों का अर्थ है सबको छोड़ना, पुण्य नहीं इत्यादि, लेकिन शांतचित्तता (यानी ध्यान), ... [जैसा परिलक्षित होता है] जोड़े में, शांतचित्तता और अंतरदृष्टि... 'केवल' शब्द असल में महज विशिष्टता के साथ ध्यान को छोड़ना है [ध्यान का समावेश]; क्योंकि ध्यान को दोनों श्रेणियों, अभिगम [या क्षणिक] और समावेश में देखा जाता है।... अगर इन पंक्तियों को उन लोगों के लिए एक सीख की तरह देखें जो अंतरदृष्टि का रास्ता अपनाते हैं तो इसका अर्थ ये नहीं है कि ध्यान है ही नहीं; क्योंकि बिना क्षणिक ध्यान के अंतरदृष्टि आ ही नहीं सकती। और फिर, अंतरदृष्टि को अस्थायित्व, पीड़ा और स्वयं नहीं [तिलक्खना देखें] के अभिप्राय में समझा जाना चाहिए; न कि केवल अस्थायित्व के परिप्रेक्ष्य में (बुद्धघोष & लुआ त्रुटि मॉड्यूल:Lang में पंक्ति 1665 पर: attempt to index field 'engvar_sel_t' (a nil value)।, 1999, p. 750, n . 3).
  • देखें, Access to Insight: Readings in Theravada Buddhism, Buddharakkhita (1996b). Archived 2010-04-29 at the वेबैक मशीन
  • देखें Thanissaro (2000). Archived 2010-04-25 at the वेबैक मशीन इस सूत्र की 290वीं पंक्ति को थनिस्सारो ने इस रूप में अनुवाद किया है:
    पवित्र आत्मा ने कहा: "ये शुद्धीकरण का सीधा पथ है, दु:ख और विलाप से उबरने का रास्ता है, कष्ट और व्यथा की समाप्ति का, सही पथ की प्राप्ति का और
    बंधन खोलने के अनुभूति का — दूसरे शब्दों में सन्दर्भ के चार स्तंभ....
  • सैली बी किंग, द ड्रॉक्ट्राइन ऑफ बुद्ध-नेचर इज़ इंपेकैबिली बुद्धिस्ट. (Sallie B. King, The Doctrine of Buddha-Nature is impeccably Buddhist)[6] Archived 2007-09-27 at the वेबैक मशीन पृष्ठ 1-6.
  • हेंग-चिंग शी, "The Significance Of 'Tathagatagarbha' -- A Positive Expression Of 'Sunyata.'" Archived 2007-10-23 at the वेबैक मशीन ज़ेन (ZEN) कंप्यूटर सिस्टम्स पर
  • हेंग-चिंग शी, "The Significance Of 'Tathagatagarbha', A Positive Expression Of 'Sunyata'". Archived 2007-10-23 at the वेबैक मशीन, ज़ेन (ZEN) कंप्यूटर सिस्टम्स पर
  • बुद्ध के बुझी हुई लौ के रूपक को वेद के सन्दर्भ में नहीं लिया जाना चाहिए जहां अग्नि अमर है, या फिर आधुनिक सन्दर्भ में भी नहीं, जहां बुझी हुई अग्नि का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है। इसके विपरीत वो एक ऐसी स्थिति का वर्णन करते हैं जो होने और नहीं होने से जुड़े सभी प्रश्नों से परे है। देखें Access to Insight: Readings in Theravada Buddhism. Archived 2010-01-19 at the वेबैक मशीन
  • Jacobi, Hermann; Ed. F. Max Müller (1884). Kalpa Sutra, Jain Sutras Part I, Sacred Books of the East, Vol. 22. Oxford: The Clarendon Press. मूल से 7 जुलाई 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2 जून 2010.
  • Jacobi, Hermann; Ed. F. Max Müller (1895). Uttaradhyayana Sutra, Jain Sutras Part II, Sacred Books of the East, Vol. 45. Oxford: The Clarendon Press. मूल से 4 जुलाई 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2 जून 2010.

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