Analysis of information sources in references of the Wikipedia article "महात्मा गांधी" in Hindi language version.
एक अन्य मत के अनुसार स्वामी श्रद्धानन्द ने 1915मे गाँधी को महात्मा की उपाधि दी थी। तीसरा मत ये है कि गुरु रविंद्रनाथ टैगोर ने गांधीजी को सर्वप्रथम महात्मा की उपाधि दी। 1915 के प्रारम्भ में जब पहला विश्वयुद्ध चल रहा था गान्धी अपनी पूरी भक्त मण्डली के साथ भारत में अवतरित हुए। उन्होंने आते ही यह घोषणा की कि वह राजनीति में भाग नहीं लेंगे, केवल समाज-सेवा का कार्य करेंगे। सौराष्ट्र की गोंडाल नामक रियासत में गान्धी के सम्मान में एक सार्वजनिक सभा की गयी जिसमें गोंडाल के दीवान रणछोड़दास पटवारी की अध्यक्षता में राजवैद्य जीवराम कालिदास ने उन्हें 'महात्मा' की उपाधि से विभूषित किया।
मैं जानता हूँ कि ब्रिटिश सरकार भारत की स्वाधीनता की माँग कभी स्वीकार नहीं करेगी। मैं इस बात का कायल हो चुका हूँ कि यदि हमें आज़ादी चाहिये तो हमें खून के दरिया से गुजरने को तैयार रहना चाहिये। अगर मुझे उम्मीद होती कि आज़ादी पाने का एक और सुनहरा मौका अपनी जिन्दगी में हमें मिलेगा तो मैं शायद घर छोड़ता ही नहीं। मैंने जो कुछ किया है अपने देश के लिये किया है। विश्व में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने और भारत की स्वाधीनता के लक्ष्य के निकट पहुँचने के लिये किया है। भारत की स्वाधीनता की आखिरी लड़ाई शुरू हो चुकी है। आज़ाद हिन्द फौज़ के सैनिक भारत की भूमि पर सफलतापूर्वक लड़ रहे हैं। हे राष्ट्रपिता! भारत की स्वाधीनता के इस पावन युद्ध में हम आपका आशीर्वाद और शुभ कामनायें चाहते हैं।
एक अन्य मत के अनुसार स्वामी श्रद्धानन्द ने 1915मे गाँधी को महात्मा की उपाधि दी थी। तीसरा मत ये है कि गुरु रविंद्रनाथ टैगोर ने गांधीजी को सर्वप्रथम महात्मा की उपाधि दी। 1915 के प्रारम्भ में जब पहला विश्वयुद्ध चल रहा था गान्धी अपनी पूरी भक्त मण्डली के साथ भारत में अवतरित हुए। उन्होंने आते ही यह घोषणा की कि वह राजनीति में भाग नहीं लेंगे, केवल समाज-सेवा का कार्य करेंगे। सौराष्ट्र की गोंडाल नामक रियासत में गान्धी के सम्मान में एक सार्वजनिक सभा की गयी जिसमें गोंडाल के दीवान रणछोड़दास पटवारी की अध्यक्षता में राजवैद्य जीवराम कालिदास ने उन्हें 'महात्मा' की उपाधि से विभूषित किया।
मैं जानता हूँ कि ब्रिटिश सरकार भारत की स्वाधीनता की माँग कभी स्वीकार नहीं करेगी। मैं इस बात का कायल हो चुका हूँ कि यदि हमें आज़ादी चाहिये तो हमें खून के दरिया से गुजरने को तैयार रहना चाहिये। अगर मुझे उम्मीद होती कि आज़ादी पाने का एक और सुनहरा मौका अपनी जिन्दगी में हमें मिलेगा तो मैं शायद घर छोड़ता ही नहीं। मैंने जो कुछ किया है अपने देश के लिये किया है। विश्व में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने और भारत की स्वाधीनता के लक्ष्य के निकट पहुँचने के लिये किया है। भारत की स्वाधीनता की आखिरी लड़ाई शुरू हो चुकी है। आज़ाद हिन्द फौज़ के सैनिक भारत की भूमि पर सफलतापूर्वक लड़ रहे हैं। हे राष्ट्रपिता! भारत की स्वाधीनता के इस पावन युद्ध में हम आपका आशीर्वाद और शुभ कामनायें चाहते हैं।