Analysis of information sources in references of the Wikipedia article "सिक्किम" in Hindi language version.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)बौद्ध भिक्षु गुरु रिन्पोचे (पद्मसंभव) का ८वीं सदी में सिक्किम दौरा यहाँ से सम्बन्धित सबसे प्राचीन विवरण है। अभिलेखित है कि उन्होंने बौद्ध धर्म का प्रचार किया, सिक्किम को आशीष दिया तथा कुछ सदियों पश्चात आने वाले राज्य की भविष्यवाणी की। मान्यता के अनुसार १४वीं सदी में ख्ये बुम्सा, पूर्वी तिब्बत में खाम के मिन्यक महल के एक राजकुमार को एक रात दैवीय दृष्टि के अनुसार दक्षिण की ओर जाने का आदेश मिला। इनके ही वंशजों ने सिक्किम में राजतन्त्र की स्थापना की। १६४२ ईस्वी में ख्ये के पाँचवें वंशज फुन्त्सोंग नामग्याल को तीन बौद्ध भिक्षु, जो उत्तर, पूर्व तथा दक्षिण से आये थे, द्वारा युक्सोम में सिक्किम का प्रथम चोग्याल (राजा) घोषित किया गया। इस प्रकार सिक्किम में राजतन्त्र का आरम्भ हुआ।
फुन्त्सोंग नामग्याल के पुत्र, तेन्सुंग नामग्याल ने उनके पश्चात १६७० में कार्य-भार संभाला। तेन्सुंग ने राजधानी को युक्सोम से रबदेन्त्से स्थानान्तरित कर दिया। सन १७०० में भूटान में चोग्याल की अर्ध-बहन, जिसे राज-गद्दी से वंचित कर दिया गया था, द्वारा सिक्किम पर आक्रमण हुआ। तिब्बतियों की सहयता से चोग्याल को राज-गद्दी पुनः सौंप दी गयी। १७१७ तथा १७३३ के बीच सिक्किम को नेपाल तथा भूटान के अनेक आक्रमणों का सामना करना पड़ा जिसके कारण रबदेन्त्से का अन्तत:पतन हो गया।
1791 में चीन ने सिक्किम की मदद के लिये और तिब्बत को गोरखा से बचाने के लिये अपनी सेना भेज दी थी। नेपाल की हार के पश्चात, सिक्किम किंग वंश का भाग बन गया। पड़ोसी देश भारत में ब्रतानी राज आने के बाद सिक्किम ने अपने प्रमुख दुश्मन नेपाल के विरुद्ध उससे हाथ मिला लिया। नेपाल ने सिक्किम पर आक्रमण किया एवं तराई समेत काफी सारे क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। इसकी वज़ह से ईस्ट इंडिया कम्पनी ने नेपाल पर चढ़ाई की जिसका परिणाम १८१४ का गोरखा युद्ध रहा।
सिक्किम और नेपाल के बीच हुई सुगौली संधि तथा सिक्किम और ब्रतानवी भारत के बीच हुई तितालिया संधि के द्वारा नेपाल द्वारा अधिकृत सिक्किमी क्षेत्र सिक्किम को वर्ष १८१७ में लौटा दिया गया। यद्यपि, अंग्रेजों द्वारा मोरांग प्रदेश में कर लागू करने के कारण सिक्किम और अंग्रेजी शासन के बीच संबंधों में कड़वाहट आ गयी। वर्ष १८४९ में दो अंग्रेज़ अफसर, सर जोसेफ डाल्टन और डाक्टर अर्चिबाल्ड कैम्पबेल, जिसमें उत्तरवर्ती (डाक्टर अर्चिबाल्ड) सिक्किम और ब्रिटिश सरकार के बीच संबंधों के लिए जिम्मेदार था, बिना अनुमति अथवा सूचना के सिक्किम के पर्वतों में जा पहुंचे। इन दोनों अफसरों को सिक्किम सरकार द्वारा बंधी बना लिया गया। नाराज ब्रिटिश शासन ने इस हिमालयी राज्य पर चढाई कर दी और इसे १८३५ में भारत के साथ मिला लिया। इस चढाई के परिणाम वश चोग्याल ब्रिटिश गवर्नर के अधीन एक कठपुतली राजा बन कर रह गया।<ref name="Hist">"History of Sikkim". Government of Sikkim. 29 अगस्त 2002. मूल से 30 अक्तूबर 2006 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 अक्टूबर 2006. |date=
में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)बौद्ध भिक्षु गुरु रिन्पोचे (पद्मसंभव) का ८वीं सदी में सिक्किम दौरा यहाँ से सम्बन्धित सबसे प्राचीन विवरण है। अभिलेखित है कि उन्होंने बौद्ध धर्म का प्रचार किया, सिक्किम को आशीष दिया तथा कुछ सदियों पश्चात आने वाले राज्य की भविष्यवाणी की। मान्यता के अनुसार १४वीं सदी में ख्ये बुम्सा, पूर्वी तिब्बत में खाम के मिन्यक महल के एक राजकुमार को एक रात दैवीय दृष्टि के अनुसार दक्षिण की ओर जाने का आदेश मिला। इनके ही वंशजों ने सिक्किम में राजतन्त्र की स्थापना की। १६४२ ईस्वी में ख्ये के पाँचवें वंशज फुन्त्सोंग नामग्याल को तीन बौद्ध भिक्षु, जो उत्तर, पूर्व तथा दक्षिण से आये थे, द्वारा युक्सोम में सिक्किम का प्रथम चोग्याल (राजा) घोषित किया गया। इस प्रकार सिक्किम में राजतन्त्र का आरम्भ हुआ।
फुन्त्सोंग नामग्याल के पुत्र, तेन्सुंग नामग्याल ने उनके पश्चात १६७० में कार्य-भार संभाला। तेन्सुंग ने राजधानी को युक्सोम से रबदेन्त्से स्थानान्तरित कर दिया। सन १७०० में भूटान में चोग्याल की अर्ध-बहन, जिसे राज-गद्दी से वंचित कर दिया गया था, द्वारा सिक्किम पर आक्रमण हुआ। तिब्बतियों की सहयता से चोग्याल को राज-गद्दी पुनः सौंप दी गयी। १७१७ तथा १७३३ के बीच सिक्किम को नेपाल तथा भूटान के अनेक आक्रमणों का सामना करना पड़ा जिसके कारण रबदेन्त्से का अन्तत:पतन हो गया।
1791 में चीन ने सिक्किम की मदद के लिये और तिब्बत को गोरखा से बचाने के लिये अपनी सेना भेज दी थी। नेपाल की हार के पश्चात, सिक्किम किंग वंश का भाग बन गया। पड़ोसी देश भारत में ब्रतानी राज आने के बाद सिक्किम ने अपने प्रमुख दुश्मन नेपाल के विरुद्ध उससे हाथ मिला लिया। नेपाल ने सिक्किम पर आक्रमण किया एवं तराई समेत काफी सारे क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। इसकी वज़ह से ईस्ट इंडिया कम्पनी ने नेपाल पर चढ़ाई की जिसका परिणाम १८१४ का गोरखा युद्ध रहा।
सिक्किम और नेपाल के बीच हुई सुगौली संधि तथा सिक्किम और ब्रतानवी भारत के बीच हुई तितालिया संधि के द्वारा नेपाल द्वारा अधिकृत सिक्किमी क्षेत्र सिक्किम को वर्ष १८१७ में लौटा दिया गया। यद्यपि, अंग्रेजों द्वारा मोरांग प्रदेश में कर लागू करने के कारण सिक्किम और अंग्रेजी शासन के बीच संबंधों में कड़वाहट आ गयी। वर्ष १८४९ में दो अंग्रेज़ अफसर, सर जोसेफ डाल्टन और डाक्टर अर्चिबाल्ड कैम्पबेल, जिसमें उत्तरवर्ती (डाक्टर अर्चिबाल्ड) सिक्किम और ब्रिटिश सरकार के बीच संबंधों के लिए जिम्मेदार था, बिना अनुमति अथवा सूचना के सिक्किम के पर्वतों में जा पहुंचे। इन दोनों अफसरों को सिक्किम सरकार द्वारा बंधी बना लिया गया। नाराज ब्रिटिश शासन ने इस हिमालयी राज्य पर चढाई कर दी और इसे १८३५ में भारत के साथ मिला लिया। इस चढाई के परिणाम वश चोग्याल ब्रिटिश गवर्नर के अधीन एक कठपुतली राजा बन कर रह गया।<ref name="Hist">"History of Sikkim". Government of Sikkim. 29 अगस्त 2002. मूल से 30 अक्तूबर 2006 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 अक्टूबर 2006. |date=
में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)बौद्ध भिक्षु गुरु रिन्पोचे (पद्मसंभव) का ८वीं सदी में सिक्किम दौरा यहाँ से सम्बन्धित सबसे प्राचीन विवरण है। अभिलेखित है कि उन्होंने बौद्ध धर्म का प्रचार किया, सिक्किम को आशीष दिया तथा कुछ सदियों पश्चात आने वाले राज्य की भविष्यवाणी की। मान्यता के अनुसार १४वीं सदी में ख्ये बुम्सा, पूर्वी तिब्बत में खाम के मिन्यक महल के एक राजकुमार को एक रात दैवीय दृष्टि के अनुसार दक्षिण की ओर जाने का आदेश मिला। इनके ही वंशजों ने सिक्किम में राजतन्त्र की स्थापना की। १६४२ ईस्वी में ख्ये के पाँचवें वंशज फुन्त्सोंग नामग्याल को तीन बौद्ध भिक्षु, जो उत्तर, पूर्व तथा दक्षिण से आये थे, द्वारा युक्सोम में सिक्किम का प्रथम चोग्याल (राजा) घोषित किया गया। इस प्रकार सिक्किम में राजतन्त्र का आरम्भ हुआ।
फुन्त्सोंग नामग्याल के पुत्र, तेन्सुंग नामग्याल ने उनके पश्चात १६७० में कार्य-भार संभाला। तेन्सुंग ने राजधानी को युक्सोम से रबदेन्त्से स्थानान्तरित कर दिया। सन १७०० में भूटान में चोग्याल की अर्ध-बहन, जिसे राज-गद्दी से वंचित कर दिया गया था, द्वारा सिक्किम पर आक्रमण हुआ। तिब्बतियों की सहयता से चोग्याल को राज-गद्दी पुनः सौंप दी गयी। १७१७ तथा १७३३ के बीच सिक्किम को नेपाल तथा भूटान के अनेक आक्रमणों का सामना करना पड़ा जिसके कारण रबदेन्त्से का अन्तत:पतन हो गया।
1791 में चीन ने सिक्किम की मदद के लिये और तिब्बत को गोरखा से बचाने के लिये अपनी सेना भेज दी थी। नेपाल की हार के पश्चात, सिक्किम किंग वंश का भाग बन गया। पड़ोसी देश भारत में ब्रतानी राज आने के बाद सिक्किम ने अपने प्रमुख दुश्मन नेपाल के विरुद्ध उससे हाथ मिला लिया। नेपाल ने सिक्किम पर आक्रमण किया एवं तराई समेत काफी सारे क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। इसकी वज़ह से ईस्ट इंडिया कम्पनी ने नेपाल पर चढ़ाई की जिसका परिणाम १८१४ का गोरखा युद्ध रहा।
सिक्किम और नेपाल के बीच हुई सुगौली संधि तथा सिक्किम और ब्रतानवी भारत के बीच हुई तितालिया संधि के द्वारा नेपाल द्वारा अधिकृत सिक्किमी क्षेत्र सिक्किम को वर्ष १८१७ में लौटा दिया गया। यद्यपि, अंग्रेजों द्वारा मोरांग प्रदेश में कर लागू करने के कारण सिक्किम और अंग्रेजी शासन के बीच संबंधों में कड़वाहट आ गयी। वर्ष १८४९ में दो अंग्रेज़ अफसर, सर जोसेफ डाल्टन और डाक्टर अर्चिबाल्ड कैम्पबेल, जिसमें उत्तरवर्ती (डाक्टर अर्चिबाल्ड) सिक्किम और ब्रिटिश सरकार के बीच संबंधों के लिए जिम्मेदार था, बिना अनुमति अथवा सूचना के सिक्किम के पर्वतों में जा पहुंचे। इन दोनों अफसरों को सिक्किम सरकार द्वारा बंधी बना लिया गया। नाराज ब्रिटिश शासन ने इस हिमालयी राज्य पर चढाई कर दी और इसे १८३५ में भारत के साथ मिला लिया। इस चढाई के परिणाम वश चोग्याल ब्रिटिश गवर्नर के अधीन एक कठपुतली राजा बन कर रह गया।<ref name="Hist">"History of Sikkim". Government of Sikkim. 29 अगस्त 2002. मूल से 30 अक्तूबर 2006 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 अक्टूबर 2006. |date=
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)बौद्ध भिक्षु गुरु रिन्पोचे (पद्मसंभव) का ८वीं सदी में सिक्किम दौरा यहाँ से सम्बन्धित सबसे प्राचीन विवरण है। अभिलेखित है कि उन्होंने बौद्ध धर्म का प्रचार किया, सिक्किम को आशीष दिया तथा कुछ सदियों पश्चात आने वाले राज्य की भविष्यवाणी की। मान्यता के अनुसार १४वीं सदी में ख्ये बुम्सा, पूर्वी तिब्बत में खाम के मिन्यक महल के एक राजकुमार को एक रात दैवीय दृष्टि के अनुसार दक्षिण की ओर जाने का आदेश मिला। इनके ही वंशजों ने सिक्किम में राजतन्त्र की स्थापना की। १६४२ ईस्वी में ख्ये के पाँचवें वंशज फुन्त्सोंग नामग्याल को तीन बौद्ध भिक्षु, जो उत्तर, पूर्व तथा दक्षिण से आये थे, द्वारा युक्सोम में सिक्किम का प्रथम चोग्याल (राजा) घोषित किया गया। इस प्रकार सिक्किम में राजतन्त्र का आरम्भ हुआ।
फुन्त्सोंग नामग्याल के पुत्र, तेन्सुंग नामग्याल ने उनके पश्चात १६७० में कार्य-भार संभाला। तेन्सुंग ने राजधानी को युक्सोम से रबदेन्त्से स्थानान्तरित कर दिया। सन १७०० में भूटान में चोग्याल की अर्ध-बहन, जिसे राज-गद्दी से वंचित कर दिया गया था, द्वारा सिक्किम पर आक्रमण हुआ। तिब्बतियों की सहयता से चोग्याल को राज-गद्दी पुनः सौंप दी गयी। १७१७ तथा १७३३ के बीच सिक्किम को नेपाल तथा भूटान के अनेक आक्रमणों का सामना करना पड़ा जिसके कारण रबदेन्त्से का अन्तत:पतन हो गया।
1791 में चीन ने सिक्किम की मदद के लिये और तिब्बत को गोरखा से बचाने के लिये अपनी सेना भेज दी थी। नेपाल की हार के पश्चात, सिक्किम किंग वंश का भाग बन गया। पड़ोसी देश भारत में ब्रतानी राज आने के बाद सिक्किम ने अपने प्रमुख दुश्मन नेपाल के विरुद्ध उससे हाथ मिला लिया। नेपाल ने सिक्किम पर आक्रमण किया एवं तराई समेत काफी सारे क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। इसकी वज़ह से ईस्ट इंडिया कम्पनी ने नेपाल पर चढ़ाई की जिसका परिणाम १८१४ का गोरखा युद्ध रहा।
सिक्किम और नेपाल के बीच हुई सुगौली संधि तथा सिक्किम और ब्रतानवी भारत के बीच हुई तितालिया संधि के द्वारा नेपाल द्वारा अधिकृत सिक्किमी क्षेत्र सिक्किम को वर्ष १८१७ में लौटा दिया गया। यद्यपि, अंग्रेजों द्वारा मोरांग प्रदेश में कर लागू करने के कारण सिक्किम और अंग्रेजी शासन के बीच संबंधों में कड़वाहट आ गयी। वर्ष १८४९ में दो अंग्रेज़ अफसर, सर जोसेफ डाल्टन और डाक्टर अर्चिबाल्ड कैम्पबेल, जिसमें उत्तरवर्ती (डाक्टर अर्चिबाल्ड) सिक्किम और ब्रिटिश सरकार के बीच संबंधों के लिए जिम्मेदार था, बिना अनुमति अथवा सूचना के सिक्किम के पर्वतों में जा पहुंचे। इन दोनों अफसरों को सिक्किम सरकार द्वारा बंधी बना लिया गया। नाराज ब्रिटिश शासन ने इस हिमालयी राज्य पर चढाई कर दी और इसे १८३५ में भारत के साथ मिला लिया। इस चढाई के परिणाम वश चोग्याल ब्रिटिश गवर्नर के अधीन एक कठपुतली राजा बन कर रह गया।<ref name="Hist">"History of Sikkim". Government of Sikkim. 29 अगस्त 2002. मूल से 30 अक्तूबर 2006 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 अक्टूबर 2006. |date=
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