Analysis of information sources in references of the Wikipedia article "सोहगौरा ताम्रलेख" in Hindi language version.
One of the earliest copperplates, the Sahgaura plate, dates back to the Mauryan period.
सोहगौरा से मौर्यकालीन ताम्रपत्र अभिलेख प्राप्त हुआ है और तब से बारहवीं शताब्दी तक ताम्रपत्रों का प्रचलन रहा।
सोहगौरा ताम्रपत्र लेख: ....जायसवाल ने इसे चन्द्रगुप्त मौर्य के काल में रखा है। फ्लीट ने इसे 320-180 ईसा पूर्व के बीच कहीं रखना उचित समझा है । अक्षर-आकारों के आधार पर बूलर इसे मौर्यकालीन मानते हैं। सरकार के अनुसार इसे तृतीय शातब्दी ईसा पूर्व के पहले नहीं रखा जा सकता। दानी इसे प्रथम शताब्दी ईस्वी से सम्बन्धित करते हैं। बी०एम० बरूआ इसे प्राड् मौर्यकालीन मानते हैं। राजबली पाण्डेय एवं एस०एन० राय का भी यही मत है। उपासक ने सरकार के मत को अधिमान्यता प्रदान किया है।
सन् 1893 में गोरखपुर तहसील के सोहगौर गाँव के एक निवासी को 1.6 मि.मी. मोटाई और 6.4 × 2.9 से.मी. आकार का एक ताम्र पट्ट मिला। खुदुरे सतह वाले इस पट्ट को दीवार में टाँगने के उद्देश्य से इसके चार कोनों पर छिद्र बने हुए थे। ताम्र पट्ट पर प्राकृत भाषा तथा ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण चार पंक्तियों का एक अभिलेख था।
सम्राट् अशोक से पूर्वकाल के तीन स्पष्ट पढ़े गए लेख इस समय तक मिल चुके हैं। वे हैं, महास्थान (बंगदेश) का शिलालेख, सोहगौरा (जिला गोरखपुर) का ताम्रपत्र और काङ्गड़ा अन्तर्गत बनेर नाले के ऊपर कन्हयारा से नौ मील दक्षिण तथा दाध से एक मील दूर स्थान का शिलालेख । पहले दो लेख अशोक से पूर्वकाल के हैं। कई लोग उन्हें चन्द्रगुप्त के शासन कहते हैं।
The Sohgaura inscription has been commented on by numerous scholars, who have variously assigned it a pre-Ashokan or post-Maurya date, the majority opinion currently favouring the latter. K. P. Jayaswal interpreted the crescent on the top as an emblem of the Maurya king Chandragupta and connected the contents of the inscription with the Jaina legend of a great famine during the reign of this king.
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: CS1 maint: numeric names: authors list (link)सोहगौरा से पाए गए ताम्रपत्र के अनुसार गोरखपुर का ज़िला (अर्थात् मल्लराष्ट्र का पश्चिमी भाग) श्रावस्ती महाभुक्ति में पड़ता था ।
This sign is also found on the base of a Kumrahar pillar and on many other antiquities believed to belong to the Mauryan period. Jayaswal reads it as the monogram of Chandragupta Maurya. He takes the top crescent (III.29.i) as Chandra and the remaining hill-like combination for gutta; the upper loop for ga- ∩ and the two lower loops- ∩∩ for double tta making it Chandragutta.
गोरखपुर जिले के सोहगौरा से प्राप्त होने वाला एक कांस्यपत्राभिलेख यह उल्लेख करता है कि विभिन्न ग्रामों (स्थानों) में राज्य की ओर से अकाल अथवा अन्य वैसी ही दैवी विपत्तियों के समय जनता के भरण-पोषण के लिए आपातकालीन कोठार स्थापित किये जाते थे, जो साधारण समयों में खोले नहीं जाते थे।